Thursday, August 9, 2012

हिन्‍दी साहित्‍य के विकास में पूर्णिया प्रमंडल का योगदान

डॉ. गौरी नाथ झा (पूर्णिया) द्वारा लिखित शोध प्रबंध लंबी प्रतीक्षा के बाद 'हिन्‍दी साहित्‍य के विकास में पूर्णिया प्रमंडल का योगदान' (प्रथम खंड) शीर्षक से प्रकाशित हो गया है। श्री रतिनाथ पुस्‍तकालय, पूर्णिया द्वारा यह मुकुल प्रकाशन, नई दिल्‍ली के सौजन्‍य से 2012 में प्रकाश में आया है। 1983 में पीएच. डी. की उपाधि के लिए स्‍वीकृत उनका यह शोधप्रबंध लंबे समय से पाठकों के लिए जिज्ञासा का केन्‍द्र बना हुआ था। सात अध्‍यायों में विभक्‍त यह ग्रंथ द्वितीय अध्‍याय में प्रस्‍तुत 176 साहित्‍यकारों की परिचय-प्रस्‍तुति के कारण एक महत्‍वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ के रूप में हमारे सामने है। कोसी अंचल के साहित्‍य को लेकर पहले ऐसी कोई कृति प्रकाशित नहीं हुई है, जिसमें एक साथ इतने अधिक साहित्‍यकारों का परिचय एक साथ हमें उपलब्‍ध होता हो। यद्यपि 1983 में प्रस्‍तुत शोध का परिणाम होने के कारण तीस वर्ष प्रकाशित इस पुस्‍तक में यह बात खटकती है कि ये परिचय-संदर्भ अद्यतन नहीं हैं। यद्यपि लेखक ने कुछेक लेखकों के परिचय अद्यतन करने के प्रयत्‍न किए हैं, दिवंगत लेखकों के निधन की सूचनाएँ भी दी गई हैं, लेकिन वे पर्याप्‍त नहीं हैं। कुल मिलाकर इसे तीस वर्ष पूर्व तैयार पुस्‍तक के रूप में ही देखा जाना चाहिए।
पुस्‍तक का प्रथम अध्‍याय पूर्णिया प्रमंडल की भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्‍कृतिक एवं साहित्‍यिक पृष्‍ठभूमि को समेटे हुए है। द्वितीय अध्‍याय में पूर्णिया प्रमंडल मे जन्‍मे 140 तथा इसे अपनी कर्मभूमि बनाने वाले 26 साहित्‍यकारों के जीवन एवं कृतित्‍व का संक्षिप्‍त परिचय प्रस्‍तुत किया गया है।  तृतीय अध्‍याय में बिहार के संदर्भ में पूर्णिया प्रमंडल के साहित्‍य का काल विभाजन प्रस्‍तुत किया गया है। चतुर्थ अध्‍याय में विवेच्‍य साहित्‍य पर अन्‍य भाषाओं (संस्‍कृत, बांग्‍ला, उर्दू एवं अंग्रेजी) के साहित्‍य के प्रभाव का आकलन किया गया है। पंचम अध्‍याय में समसामयिक लेखन की विविध दिशाओं पर विचार किया गया है। छठा अध्‍याय मूल्‍यांकन का है और सातवॉं उपसंहार। परिशिष्‍ट में उन 225 पुस्‍तकों की सूची दी गई है, जिनके आधार पर यह पुस्‍तक तैयार हुई है।
पुस्‍तक सूचनापरक ज्‍यादा है, इसका मूल्‍यांकन पक्ष अपेक्षाकृत संतोषजनक नहीं है। कतिपय लेखकों से संबंधित सूचनाऍं त्रुटिपूर्ण भी हैं, तथापि यह पुस्‍तक इतनी अधिक जानकारियॉं अपने आप में समेटे हुए है कि संग्रहणीय और पठनीय बन पड़ी है। अस्‍सी वर्षीय डॉ. गौरी नाथ झा पुस्‍तक के दूसरे खंड की भी तैयारी में हैं, जिसमें छूटे हुए साहित्‍यकारों का परिचय वे प्रस्‍तुत करेंगे। उनका यह जीवट प्रणम्‍य है।

पुस्‍तक प्राप्‍ति के लिए संपर्क सूत्र
श्री रतिनाथ पुस्‍तकालय, साहबान खूँट, पत्रालय : भटोत्‍तर चकला, जिला : पूर्णिया 854203 (बिहार)
संपर्क : डॉ. गौरी नाथ झा (मोबाइल : 08677916394)

Thursday, December 8, 2011

सरला राय की कृति : पूर्णियॉं के साहित्‍यकार

कोसी अंचल की दिवंगत लेखिका सरला राय की एक महत्‍वपूर्ण आलोचनात्‍मक कृति है 'पूर्णियाँ के साहित्‍यकार'। इसका प्रकाशन 1991 में तूलिका प्रकाशन, नई दिल्‍ली से हुआ था। सरला जी ने अपनी कृति में बांग्‍ला, मैथिली, उर्दू और हिन्‍दी के आठ लेखकों के जीवन और कृतित्‍व पर इस पुस्‍तक में विस्‍तार से प्रकाश डाला है। ये लेखक हैं--बांग्‍ला के केदारनाथ बंद्योपाध्‍याय एवं सतीनाथ भादुड़ी, मैथिली के कुमार गंगानंद सिंह एवं लिली रे, उर्दू के वफा मलिकपुरी एवं तारिक जमीली तथा हिन्‍दी के लक्ष्‍मीनारायण सुधांशु एवं फणीश्‍वरनाथ रेणु।
कहने की जरूरत नहीं कि अपनी अपनी भाषाओं में पूर्णिया जिले के इन साहित्‍यकारों ने राष्‍ट्रीय क्षितिज पर अपनी विशिष्‍ट पहचान कायम की है। लेखिका का विचार कुछ अन्‍य साहित्‍यकारों का परिचय प्रस्‍तुत करनेवाले पुस्‍तक के आगामी खंड भी प्रकाशित करवाने का था, लेकिन वह संभव नहीं हो पाया। सरला जी ने अपने लेखों में उक्‍त साहित्‍यकारों का न केवल पारिवारिक विवरण और जीवन प्रस्‍तुत किया है, वरन उनकी प्रकाशित-अप्रकाशित कृतियों की सूची देते हुए उनके साहित्‍यिक दाय और महत्‍व का प्रतिपादन भी भली-भॉति किया है।

Monday, October 24, 2011

कविता कोसी : कोसी अंचल की साहित्‍यिक विरासत


युवा कवि, आलोचक-संपादक देवेन्‍द्र कुमार देवेश ने कोसी अंचल (सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया जिलों) में जन्‍मे अथवा यहॉं के निवासी रचनाकारों द्वारा रचित पद्य साहित्‍य को उसके समालोचनात्‍मक आकलन के साथ क्रमबद्ध एवं व्‍यवस्‍थित रूप में 'कविता कोसी' शीर्षक से प्रकाशित करने का प्रशंसनीय कार्य किया है। 'कविता कोसी' के अब तक (2009 ई.) पॉंच खंड प्रकाशित हैं, जिनकी प्रकाशक हैं अनीता पंडित प्रत्‍येक खंड में डॉ. कामेश्‍वर पंकज द्वारा लिखित समालोचनात्‍मक आलेख पुस्‍तक के प्रारंभ में दिया गया है।

Monday, April 18, 2011

कविता कोशी तीर की


'कविता कोसी तीर की' बिहार प्रगतिशील लेखक संघ, पटना द्वारा 1997 में प्रकाशित एक महत्‍वपूर्ण कविता-संग्रह है, जिसके संपादक प्रभुनारायण विद्यार्थी हैं। इस संग्रह में कोसी अंचल के मधेपुरा जिला निवासी साठ नए-पुराने कवियों की कविताऍं और उनके संक्षिप्‍त परिचय का समावेश किया गया है। संग्रह के आरंभ में विद्यार्थी जी के संपादकीय के साथ-साथ 26 पृष्‍ठों का एक लंबा आलेख भी लिखा है, जिसमें उन्‍होंने मधेपुरा जिला की काव्‍य-साधना की परंपरा, विकास और समकालीन साहित्‍यिक विमर्श को आकलित किया है। पुस्‍तक की भूमिका प्रतिष्‍ठित कवि-आलोचक डॉ. खगेन्‍द्र ठाकुर ने लिखी है, जिसमें उन्‍होंने सर्जनात्‍मक सांस्‍कृतिक इतिहास तैयार करने के इस प्रयास का अभिनंदन किया है।
संग्रह में गोपीनाथ महाराज, विश्‍वनाथ महाराज, जिद्दत मधेपुरवी, भोलानाथ मायल, मनमोहन महाराज, यदुनाथ झा यदुवर, पुलकित लाल दास मधुर, युगल शास्‍त्री प्रेम, सत्‍यनारायण पोद्दार सत्‍य, प्रभाकर कवि, विद्याकर कवि जैसे पुराने कवियों के साथ-साथ हरिमोहन मिश्र, भगवानचंद्र विनोद, इंदुबाला देवी, हरिशंकर श्रीवास्‍तव शलभ, देवनारायण पासवान देव, महेन्‍द्रनारायण मस्‍ताना, सुरेन्‍द्र प्रसाद साह, रमेन्‍द्र यादव रवि, सुबोध सुधाकर, बसंत, मंजुश्री वात्‍स्‍यायन, भूपेन्‍द्रनारायण यादव मधेपुरी, विनय कुमार चौधरी, शब्‍बीर अहमद, शंभूशरण भारतीय, आर्या दास, शांति यादव, जनार्दन यादव, संजय कुमार सिंह, अरविन्‍द श्रीवास्‍तव, उल्‍लास मुखर्जी आदि मधेपुरा निवासी प्रमुख कवियों की कविताओं का संकलन किया गया है।

Thursday, January 13, 2011

बच्‍चा यादव द्वारा संपादित 'कथा-कोशी'


कोसी अंचल के प्रतिष्‍ठित अध्‍येता बच्‍चा यादव के संपादन में रचनाकार प्रकाशन, पूर्णिया से 1997 में प्रकाशित कहानी-संचयन 'कथा-कोशी' कोसी अंचल के समकालीन कथा परिदृश्‍य से परिचय करानेवाली महत्‍वपूर्ण पुस्‍तक है। इस पुस्‍तक के मुखपृष्‍ठ पर हिन्‍दी के प्रख्‍यात कथाकारों फणीश्‍वरनाथ रेणु और नागार्जुन की ऐसी दुर्लभ तस्‍वीर प्रकाशित है, जिसमें वे दोनों धान की रोपाई का काम कर रहे हैं। पुस्‍तक में वरिष्‍ठ-कनिष्‍ठ 43 कथाकारों की कहानियॉं संकलित हैं। साथ ही कोसी अंचल के तत्‍कालीन कथा-परिदृश्‍य की पड़ताल करते हुए धनेशदत्‍त पांडेय का आलेख 'रेणु माटी के कथाकार' और कल्‍लोल चक्रवर्ती का आलेख 'रेणु की कथा-परंपरा का प्रकाशन भी किया गया है।
संकलन में शामिल कथाकारों में चंद्रकिशोर जायसवाल, रामधारी सिंह दिवाकर, विजयकांत, महाप्रकाश, कमला प्रसाद बेखबर, नवरंग प्रसाद जायसवाल, राधा प्रसाद, सरला राय, कृतनारायण प्‍यारा, हरि दिवाकर, अनिलचंद्र ठाकुर, धनेश दत्‍त पांडेय, वसंत कुमार राय, सुबोध कुमार झा, देवशंकर नवीन, कल्‍लोल चक्रवर्ती, संजीव ठाकुर, संजय कुमार सिंह और रणविजय सिंह सत्‍यकेतु प्रमुख हैं।
बच्‍चा यादव ने संकलन की भूमिका में कोसी अंचल की ऐतिहासिक, सांस्‍कृतिक और साहित्‍यिक पृष्‍ठभूमि को रेखांकित करने का सफल प्रयास किया है। उल्‍लेखनीय है कि बच्‍चा यादव (जन्‍म फरवरी 1958, महथवा, अररिया) की गवेषणात्‍मक रचनाऍं 'हिन्‍दुस्‍तान', 'आज', पाटलिपुत्र टाइम्‍स', 'गंगा' आदि पत्र-पत्रिकाओं में बराबर स्‍थान पाती रही हैं। वे बिहार सरकार के अधिकारी हैं तथा 'मुहिम' (त्रैमासिक) पत्रिका के संपादन से जुड़े रहे हैं।

Friday, December 31, 2010

कोशी अंचल की अनमोल धरोहरें : हरिशंकर श्रीवास्‍तव 'शलभ'


कोसी अंचल के प्रतिष्‍ठित लेखक हरिशंकर श्रीवास्‍तव 'शलभ' की पुस्‍तक 'कोशी अंचल की अनमोल धरोहरें' कोसी अंचल की साहित्‍यिक-सांस्‍कृतिक विरासत को सामने लानेवाली महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेजी पुस्‍तक है। ऐतिहासिक, साहित्‍यिक एवं सांस्‍कृतिक निबंधों के इस संग्रह को समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर द्वारा 2005 ई. में प्रकाशित किया गया है। संग्रह में अंचल की धार्मिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों, गंधवरिया राजवंश एवं उसकी सांगीतिक धरोहरों, लोकदेवों, जननायक भीम कैवर्त और कोशी गीत पर लिखित आलेखों के अलावा अंचल के दस प्रतिष्‍ठित एवं महत्‍वपूर्ण लेखकों के व्‍यक्‍ितत्‍व एवं कृतित्‍व का समुचित परिचय प्रस्‍तुत किया गया है। ये दस लेखक हैं : यदुनाथ्‍ा झा यदुवर, पं. छेदी झा द्विजवर, पुलकित लालदास मधुर, पं. युगल शास्‍त्री प्रेम, सत्‍यनारायण पोद्दार सत्‍य, राधाकृष्‍ण चौधरी, परमेश्‍वरी प्रसाद मंडल, पं. राधाकृष्‍ण झा किसुन, प्रबोध नारायण सिंह तथा लक्ष्‍मी प्रसाद श्रीवास्‍तव। इन लेखकों पर प्रस्‍तुत सामग्री संस्‍मरणात्‍मक भी है और उनकी रचनाओं का परिशीलन करते हुए उनके साहित्‍यिक अवदान का रेखांकन भी।
श्री शलभ का जन्‍म 1 जनवरी 1934 ई. को मधेपुरा (बिहार) में हुआ था। बिहार सरकार की सेवा करते हुए कल्‍याण पदाधिकारी के रूप में सेवानिवृत्‍त श्री शलभ ने हिन्‍दी भाषा एवं साहित्‍य में स्‍नातकोत्‍तर तथा विधि स्‍नातक की उपाधियॉं प्राप्‍त की हैं। आपकी अन्‍य प्रकाशित कृतियॉं निम्‍नांकित हैं : अर्चना (गीत-संग्रह, 1951), आनंद (खंड काव्‍य, 1960), एक बनजारा विजन में ( कविता-संग्रह, 1989), मधेपुरा में स्‍वतंत्रता आंदोलन का इतिहास (1996), शैव अवधारणा और सिंहेश्‍वर स्‍थान (1998), मंत्रद्रष्‍टा ऋष्‍यशृंग (2003) तथा़ अंगिका लिपि की ऐतिहासिक पृष्‍ठभूमि (2006)।

Wednesday, December 8, 2010

महिषी की तारा : इतिहास और आख्‍यान


डॉ. तारानंद वियोगी कोसी अंचल के महिषी स्‍िथत सिद्धपीठ तारास्‍थान पर एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण पुस्‍तक लिखी है, जो 'महिषी की तारा : इतिहास और आख्‍यान' के नाम से नवारंभ (पटना) द्वारा 2010 में प्रकाशित की गई है। पुस्‍तक तीन अध्‍यायों में विभक्‍त है। प्रथम अध्‍याय में महिषी का सांस्‍कृतिक इतिहास और द्वितीय अध्‍याय में तारा-साधना का प्राचीन इतिहास निबद्ध किया गया है। प्रकारांतर से महिषी का सांस्‍कृतिक इतिहास कोसी अंचल का सांस्‍कृतिक इतिहास भी है। तृतीय अध्‍याय में तारा-तंत्र-साधना के महत्‍व और स्‍वरूप पर प्रकाश डाला गया है। ध्‍यातव्‍य है कि सिद्धपीठ महिषी का ज्ञात इतिहास तीन हजार वर्ष पुराना है। भगवान बुद्ध का आगमन भी यहॉं हुआ था। उस समय भी यहॉं की उन्‍नत सांस्‍कृतिक विशिष्‍टता ने उनका ध्‍यान आकृष्‍ट किया था। पूर्व में यह किरातों का क्षेत्र था। महाभारत काल में पांडवों ने यहॉं की किरात जातियों से वैवाहिक संबंध भी स्‍थापित किए थे। आगे चलकर आर्य एवं किरातों के समन्‍वय के पश्‍चात यहॉं एक मिश्रित संस्‍कृति का विकास हुआ। बौद्धकाल में भी बड़ी संख्‍या में यहॉं के लोग बौद्धावलंबी हुए। मौर्यकाल में बौद्ध गतिविधियों की यहॉं काफी सक्रियता रही।
उक्‍त सांस्‍कृतिक विविधता के अलावा कोसी अंचल का यह परिसर मौर्य, गुप्‍त, पाल, शुंग, काण्‍व, आंध्र, कुषाण, नाग, वाकाटक, हर्षवर्धन, मिथिला नरेश आदि शासकों द्वारा शासित होता रहा। राजनीतिक उथल-पुथल, सांस्‍कृतिक वैविध्‍य और कोसी नदी के विकराल तांडव ने कोसी अंचल की सभ्‍यता-संस्‍कृति को गहरे प्रभावित किया है। तारानंद वियोगी ने अपनी पुस्‍तक में सांस्‍कृतिक इतिहास को खंगालते हुए यह स्‍थापित किया है कि महिषी की तारा मूलत: एक बौद्ध देवी हैं, जिन्‍हें सभी बुद्धों की माता का स्‍थान प्राप्‍त है।
महिषी (सहरसा) में 12 मई 1966 को जन्‍मे डॉ. तारानंद वियोगी हिन्‍दी एवं मैथिली के प्रतिष्‍ठित लेखक हैं, जिनकी मौलिक-संपादित दो दर्जन पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।