कहने की जरूरत नहीं कि अपनी अपनी भाषाओं में पूर्णिया जिले के इन साहित्यकारों ने राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी विशिष्ट पहचान कायम की है। लेखिका का विचार कुछ अन्य साहित्यकारों का परिचय प्रस्तुत करनेवाले पुस्तक के आगामी खंड भी प्रकाशित करवाने का था, लेकिन वह संभव नहीं हो पाया। सरला जी ने अपने लेखों में उक्त साहित्यकारों का न केवल पारिवारिक विवरण और जीवन प्रस्तुत किया है, वरन उनकी प्रकाशित-अप्रकाशित कृतियों की सूची देते हुए उनके साहित्यिक दाय और महत्व का प्रतिपादन भी भली-भॉति किया है।
हजारों वर्षों से जिस नदी की धाराएँ निरंतर परिवर्तनशील रही हैं, उस नदी की धाराओं के साथ गतिशील जीवन-जगत की अनुभूतियों का अवगाहन साहित्य के माध्यम से किया जाना सचमुच न केवल दिलचस्प वरन् महत्त्वपूर्ण भी है। लेकिन विध्वंसकारी कोसी ने अपने तटवर्ती जीवन-जगत के साथ संभवत: अधिकांश साहित्यिक विरासत को भी प्राय: निगलने का काम ही किया है। कोसी अंचल के निकटवर्ती नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के विध्वंस (1197 ई.) के कारण भी इस क्षेत्र की ज्ञान और साहित्य विषयक विरासत नष्ट हुई होगी।
Showing posts with label purnea. Show all posts
Showing posts with label purnea. Show all posts
Thursday, December 8, 2011
सरला राय की कृति : पूर्णियॉं के साहित्यकार
कोसी अंचल की दिवंगत लेखिका सरला राय की एक महत्वपूर्ण आलोचनात्मक कृति है 'पूर्णियाँ के साहित्यकार'। इसका प्रकाशन 1991 में तूलिका प्रकाशन, नई दिल्ली से हुआ था। सरला जी ने अपनी कृति में बांग्ला, मैथिली, उर्दू और हिन्दी के आठ लेखकों के जीवन और कृतित्व पर इस पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। ये लेखक हैं--बांग्ला के केदारनाथ बंद्योपाध्याय एवं सतीनाथ भादुड़ी, मैथिली के कुमार गंगानंद सिंह एवं लिली रे, उर्दू के वफा मलिकपुरी एवं तारिक जमीली तथा हिन्दी के लक्ष्मीनारायण सुधांशु एवं फणीश्वरनाथ रेणु।
Subscribe to:
Posts (Atom)