
डॉ. तारानंद वियोगी कोसी अंचल के महिषी स्िथत सिद्धपीठ तारास्थान पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है, जो 'महिषी की तारा : इतिहास और आख्यान' के नाम से नवारंभ (पटना) द्वारा 2010 में प्रकाशित की गई है। पुस्तक तीन अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में महिषी का सांस्कृतिक इतिहास और द्वितीय अध्याय में तारा-साधना का प्राचीन इतिहास निबद्ध किया गया है। प्रकारांतर से महिषी का सांस्कृतिक इतिहास कोसी अंचल का सांस्कृतिक इतिहास भी है। तृतीय अध्याय में तारा-तंत्र-साधना के महत्व और स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। ध्यातव्य है कि सिद्धपीठ महिषी का ज्ञात इतिहास तीन हजार वर्ष पुराना है। भगवान बुद्ध का आगमन भी यहॉं हुआ था। उस समय भी यहॉं की उन्नत सांस्कृतिक विशिष्टता ने उनका ध्यान आकृष्ट किया था। पूर्व में यह किरातों का क्षेत्र था। महाभारत काल में पांडवों ने यहॉं की किरात जातियों से वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए थे। आगे चलकर आर्य एवं किरातों के समन्वय के पश्चात यहॉं एक मिश्रित संस्कृति का विकास हुआ। बौद्धकाल में भी बड़ी संख्या में यहॉं के लोग बौद्धावलंबी हुए। मौर्यकाल में बौद्ध गतिविधियों की यहॉं काफी सक्रियता रही।
उक्त सांस्कृतिक विविधता के अलावा कोसी अंचल का यह परिसर मौर्य, गुप्त, पाल, शुंग, काण्व, आंध्र, कुषाण, नाग, वाकाटक, हर्षवर्धन, मिथिला नरेश आदि शासकों द्वारा शासित होता रहा। राजनीतिक उथल-पुथल, सांस्कृतिक वैविध्य और कोसी नदी के विकराल तांडव ने कोसी अंचल की सभ्यता-संस्कृति को गहरे प्रभावित किया है। तारानंद वियोगी ने अपनी पुस्तक में सांस्कृतिक इतिहास को खंगालते हुए यह स्थापित किया है कि महिषी की तारा मूलत: एक बौद्ध देवी हैं, जिन्हें सभी बुद्धों की माता का स्थान प्राप्त है।
महिषी (सहरसा) में 12 मई 1966 को जन्मे डॉ. तारानंद वियोगी हिन्दी एवं मैथिली के प्रतिष्ठित लेखक हैं, जिनकी मौलिक-संपादित दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
देवेश जी
ReplyDeleteआपने बहुत गुणग्राहकता के साथ टिप्पणीलिखी है। पसंद आई।मित्रों की राय मेरे लिए महत्वपूर्ण होगी।
ताराननद वियोगी