हजारों वर्षों से जिस नदी की धाराएँ निरंतर परिवर्तनशील रही हैं, उस नदी की धाराओं के साथ गतिशील जीवन-जगत की अनुभूतियों का अवगाहन साहित्य के माध्यम से किया जाना सचमुच न केवल दिलचस्प वरन् महत्त्वपूर्ण भी है। लेकिन विध्वंसकारी कोसी ने अपने तटवर्ती जीवन-जगत के साथ संभवत: अधिकांश साहित्यिक विरासत को भी प्राय: निगलने का काम ही किया है। कोसी अंचल के निकटवर्ती नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के विध्वंस (1197 ई.) के कारण भी इस क्षेत्र की ज्ञान और साहित्य विषयक विरासत नष्ट हुई होगी।
Thursday, July 15, 2010
शांति सुमन की गीत रचना और दृष्टि
हिन्दी एवं मैथिली की प्रतिष्ठित कवयित्री और गीतकार डॉ. शांति सुमन की समग्र रचनात्मकता पर केन्द्रित पुस्तक 'शांति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि' के नाम से सुमन भारती प्रकाशन, जमशेदपुर द्वारा 2009 में किया गया है, जिसके संपादक हैं श्री दिनेश्वर प्रसाद सिंह 'दिनेश'। पुस्तक केन्द्र, वृत्त और परिधि शीर्षक तीन खंडों में विभाजित है। 'केन्द्र' शीर्षक खंड में शांति सुमन के जनवादी गीतों पर 13 आलोचकों के विचारों का समावेश है, जिनमें प्रमुख हैं--डॉ. शिवकुमार मिश्र, डॉ. विजेन्द्र नारायण सिंह, डॉ. मैनेजर पांडेय, डॉ. रविभूषण, श्री रामनिहाल गुंजन, डॉ. चंद्रभूषण तिवारी और श्री ओमप्रकाश ग्रेवाल। इस खंड में श्री कुमारेन्द्र पारसनाथ सिंह, श्री मदन कश्यप, श्री नचिकेता, श्री रमेश रंजक और श्री माहेश्वर की आलोचनात्मक टिप्पणियॉं भी शामिल हैं। इसी खंड में शांति सुमन के नवगीतों पर 12 आलोचनात्मक आलेख भी प्रकाशित हैं। ये आलेख श्री राजेन्द्र प्रसाद सिंह, श्री उमाकांत मालवीय, डॉ. रेवती रमण, डॉ. सुरेश गौतम, श्री सत्यनारायण, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद, डॉ. वशिष्ठ अनूप, श्री ओम प्रभकर, श्री विश्वंभरनाथ उपाध्याय, श्री कुमार रवीन्द्र और डॉ. अरविन्द कुमार द्वारा प्रस्तुत किए गए है।
'वृत्त' शीर्षक खंड के अंतर्गत शांति सुमन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संपादक का एक लेख और लेखिका का आत्मकथ्य प्रकाशित किया गया है। 'परिधि' शीर्षक खंड के अंतर्गत शांति सुमन की गद्य-पद्य कृतियों पर समीक्षाऍं शामिल की गई हैं। पुस्तक के अंत में शांति सुमन के कुछ चुने हुए गीत प्रकाशित किए गए हैं।
15 सितंबर, 1944 को कोसी अंचल के एक गॉंव कासिमपुर (सहरसा) में जन्मी शांति सुमन ने अपनी किशोरावस्था से ही कविताऍं लिखना शुरू कर दिया था, जब वो आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं। उनकी पहली गीत-रचना त्रिवेणीगंज, सुपौल से प्रकाशित होनेवाली पत्रिका 'रश्मि' (संपादक : तारानंद तरुण) में छपी थी। लंगट सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर से हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त शांति सुमन ने महंत दर्शनदास महिला कॉलेज में आजीविका पाई और 33 वर्षों तक प्राध्यापन के बाद वहीं से प्रोफेसर एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद से 2004 में सेवामुक्त हुईं। 'आधुनिक हिन्दी काव्य में मध्यवर्गीय चेतना' विषय पर पीएच. डी. उपाधि प्राप्त डॉ. शांति सुमन के हिन्दी में अब तक दस नवगीत संग्रह--'ओ प्रतीक्षित' (1970), 'परछाईं टूटती' (1978), 'सुलगते पसीने' (1979), 'पसीने के रिश्ते' (1980), 'मौसम हुआ कबीर' (1985, 1999),'तप रहे कँचनार' (1997), 'भीतर-भीतर आग' (2002), 'पंख-पंख आसमान' (2004), 'एक सूर्य रोटी पर' (2006) एवं 'धूप रंगे दिन' (2007) , और 'मेघ इंद्रनील' (1991) नामक मैथिली गीत संग्रह प्रकाशित हैं। इनके अतिरिक्त उनका एक हिन्दी उपन्यास 'जल झुका हिरन' (1976) और शोधप्रबंध पर आधारित आलोचनात्मक पुस्तक 'मध्यवर्गीय चेतना और हिन्दी का आधुनिक काव्य' (1993) प्रकाशित हैं।
'सर्जना' (1963-64, तीन अंक प्रकाशित), 'अन्यथा' (1971) और 'बीज' नामक पत्रिकाओं के संपादन से संबद्ध रही शांति सुमन ने 1967 से 1990 के दौरान कवि सम्मेलनों एवं मंचों पर अपनी गीत-प्रस्तुति से अपार यश अर्जित किया। अपनी धारदार गीत सर्जना के लिए हिन्दी संसार मे विशिष्ट पहचान रखनेवाली डॉ. शांति सुमन को को विभिन्न पुरस्कार-सम्मानों से विभूषित किया गया है, जिनमें शामिल हैं--'भिक्षुक' (मुजफ्फरपुर का पत्र) द्वारा सम्मानपत्र, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का साहित्य सेवा सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग) का कविरत्न सम्मान, बिहार सरकार के राजभाषा विभाग का महादेवी वर्मा सम्मान, अवंतिका (दिल्ली) का विशिष्ट साहित्य सम्मान, मैथिली साहित्य परिषद का विद्यावाचस्पति सम्मान, हिन्दी प्रगति समिति का भारतेन्दु सम्मान एवं सुरंगमा सम्मान, विंध्य प्रदेश से साहित्य मणि सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन का साहित्य भारती सम्मान (2005) तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का सौहार्द सम्मान (2006)
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