अभी हाल ही में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा हिन्दी के प्रतिष्ठित कथाकार चंद्रकिशोर जायसवाल का नवीनतम उपन्यास 'सात फेरे' प्रकाशित किया गया है। ज्ञातव्य हो कि ज्ञानपीठ द्वारा वर्ष 2009 को 'उपन्यास वर्ष' घोषित किया गया है। इस वर्ष ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित उपन्यासों में उक्त उपन्यास आकार में सबसे बड़ा है।
कोसी अंचल के मधेपुरा जिलांतर्गत बिहारीगंज नामक गॉंव में 1940 ई. में जन्में चंद्रकिशोर जायसवाल हिन्दी के उन गिने-चुने कथाकारों में हैं, जिनके पास कम-से-कम एक दर्जन ऐसी कहानियॉं हैं, जिन्हें सदी की श्रेष्ठ कहानियों की सूची में बेहिचक रखा जा सकता है। 'नकबेसर कागा ले भागा', 'दुखियादास कबीर', 'बिशनपुर प्रेतस्य', 'हिंगवा घाट में पानी रे', 'मर गया दीपनाथ', ' 'सिपाही', 'कालभंजक', 'आखिरी ईंट', 'तर्पण', 'आघातपुष्प' और जैसी अप्रतिम कहानियॉं लिखनेवाले चंद्रकिशोर जायसवाल का यह आठवॉं उपन्यास है। उनके पूर्व प्रकाशित उपन्यासों के नाम हैं-'गवाह गैरहाजिर', 'जीबछ का बेटा बुद्ध', 'शीर्षक', 'चिरंजीव', 'दाह', 'मॉं' और 'पलटनिया'। जायसवाल जी के नौ कहानी-संग्रह, चार एकांकी पुस्तिकाऍं और दो नाटक भी प्रकाशित हैं।
रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, आनंद सागर कथाक्रम सम्मान और बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के साहित्य साधना सम्मान से सम्मानित जायसवाल जी के प्रथम प्रकाशित उपन्यास 'गवाह गैरहाजिर' पर राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा 'रुई का बोझ' शीर्षक फिल्म का निर्माण भी किया जा चुका है। दूरदर्शन द्वारा उनकी कहानी 'हिंगवा घाट में पानी रे' का फिल्मांकन और प्रसारण भी हुआ है।
'सात फेरे' एक तिहेजू वर बैजनाथ की कहानी है, जिसकी तीन बीवियॉं मर चुकी हैं; और वह चौथी बीवी की तलाश में निकला है। इस तलाश में उसका साथी है पलटू झा नामक पंडित। दोनों कन्याखोजी अभियान में सात बार अलग-अलग दिशाओं में यात्रा पर निकलते हैं और अंतिम यात्रा के पहले हर यात्रा में अपनी दुर्दशा करवाकर लौटते हैं। एक अधेड़ व्यक्ति के सात फेरों के लिए लगाए गए सात रोचक और रोमांचक फेरों की ही कथा है यह 'सात फेरे'। जायसवाल जी ने अपनी चिर-परिचित शैली में विभिन्न यादगार चरित्रों के माध्यम से व्यक्ति, परिवार, समाज और देश काल के यथार्थ का व्यंग्य-विनोदपूर्ण चित्रण किया है। यद्यपि उपन्यास वृहदाकार है, लेकिन एक बार पढ़ना शुरू करने के बाद इसे बीच में ही छोड़ पाना किसी भी पाठक के लिए मुश्किल है।
उपन्यास में कोसी अंचल के लोकजीवन, लोकसंस्कृति और लोकसाहित्य के अनेक लिखित-अलिखित विवरणों को कुशलता से पिरोया गया है और समकालीन समय के ग्रामांचलीय यथार्थ को सूक्ष्मता से उद्घाटित किया गया है।
'सात फेरे' में जायसवाल जी ने ग्रामीण यथार्थ के रेशे-रेशे को खोलकर रख दिया है। उनके रचना संसार से गुजरते हुए यह कहने में कोई झिझक नहीं हो रही है कि समकालीन हिन्दी कहानी और उपन्यास के तीन-चार जो बड़े नाम हो सकते हैं, चंद्रकिशोर जायसवाल उनमें से एक हैं। बिहार का कोसी क्षेत्र जिस समग्रता में जायसवाल जी की रचनाओं में उभरता है, वह बेमिसाल है। कोसी का इतिहास लिखते हैं जायसवाल जी। 'सात फेरे' को पढ़ते हुए कहा जा सकता है कि यह हिंदी की महत्तम उपलब्धि है।
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ReplyDelete'हिंगवा घाट में पानी रे' कहानी में नेताओं की गंदी राजनीति पर भी सटीक व्यंग्य है।
ReplyDeleteजायसवाल जी के कहनियों में आंचलि शब्दों का प्रयोग किया गया है
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