tag:blogger.com,1999:blog-60275525832148538432024-03-13T21:31:01.012-07:00कोसी साहित्यहजारों वर्षों से जिस नदी की धाराएँ निरंतर परिवर्तनशील रही हैं, उस नदी की धाराओं के साथ गतिशील जीवन-जगत की अनुभूतियों का अवगाहन साहित्य के माध्यम से किया जाना सचमुच न केवल दिलचस्प वरन् महत्त्वपूर्ण भी है। लेकिन विध्वंसकारी कोसी ने अपने तटवर्ती जीवन-जगत के साथ संभवत: अधिकांश साहित्यिक विरासत को भी प्राय: निगलने का काम ही किया है। कोसी अंचल के निकटवर्ती नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के विध्वंस (1197 ई.) के कारण भी इस क्षेत्र की ज्ञान और साहित्य विषयक विरासत नष्ट हुई होगी।देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-77034949586327979332012-08-09T00:20:00.000-07:002012-08-09T00:39:50.815-07:00हिन्दी साहित्य के विकास में पूर्णिया प्रमंडल का योगदान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-6scP4aQyDwc/UCNkifeJ7eI/AAAAAAAAAGc/XXPvCIqiCvY/s1600/scan-book+cover.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://1.bp.blogspot.com/-6scP4aQyDwc/UCNkifeJ7eI/AAAAAAAAAGc/XXPvCIqiCvY/s320/scan-book+cover.jpg" width="213" /></a></div>
डॉ. गौरी नाथ झा (पूर्णिया) द्वारा लिखित शोध प्रबंध लंबी प्रतीक्षा के बाद 'हिन्दी साहित्य के विकास में पूर्णिया प्रमंडल का योगदान' (प्रथम खंड) शीर्षक से प्रकाशित हो गया है। श्री रतिनाथ पुस्तकालय, पूर्णिया द्वारा यह मुकुल प्रकाशन, नई दिल्ली के सौजन्य से 2012 में प्रकाश में आया है। 1983 में पीएच. डी. की उपाधि के लिए स्वीकृत उनका यह शोधप्रबंध लंबे समय से पाठकों के लिए जिज्ञासा का केन्द्र बना हुआ था। सात अध्यायों में विभक्त यह ग्रंथ द्वितीय अध्याय में प्रस्तुत 176 साहित्यकारों की परिचय-प्रस्तुति के कारण एक महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ के रूप में हमारे सामने है। कोसी अंचल के साहित्य को लेकर पहले ऐसी कोई कृति प्रकाशित नहीं हुई है, जिसमें एक साथ इतने अधिक साहित्यकारों का परिचय एक साथ हमें उपलब्ध होता हो। यद्यपि 1983 में प्रस्तुत शोध का परिणाम होने के कारण तीस वर्ष प्रकाशित इस पुस्तक में यह बात खटकती है कि ये परिचय-संदर्भ अद्यतन नहीं हैं। यद्यपि लेखक ने कुछेक लेखकों के परिचय अद्यतन करने के प्रयत्न किए हैं, दिवंगत लेखकों के निधन की सूचनाएँ भी दी गई हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं। कुल मिलाकर इसे तीस वर्ष पूर्व तैयार पुस्तक के रूप में ही देखा जाना चाहिए।
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पुस्तक का प्रथम अध्याय पूर्णिया प्रमंडल की भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक पृष्ठभूमि को समेटे हुए है। द्वितीय अध्याय में पूर्णिया प्रमंडल मे जन्मे 140 तथा इसे अपनी कर्मभूमि बनाने वाले 26 साहित्यकारों के जीवन एवं कृतित्व का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। तृतीय अध्याय में बिहार के संदर्भ में पूर्णिया प्रमंडल के साहित्य का काल विभाजन प्रस्तुत किया गया है। चतुर्थ अध्याय में विवेच्य साहित्य पर अन्य भाषाओं (संस्कृत, बांग्ला, उर्दू एवं अंग्रेजी) के साहित्य के प्रभाव का आकलन किया गया है। पंचम अध्याय में समसामयिक लेखन की विविध दिशाओं पर विचार किया गया है। छठा अध्याय मूल्यांकन का है और सातवॉं उपसंहार। परिशिष्ट में उन 225 पुस्तकों की सूची दी गई है, जिनके आधार पर यह पुस्तक तैयार हुई है।<br />
पुस्तक सूचनापरक ज्यादा है, इसका मूल्यांकन पक्ष अपेक्षाकृत संतोषजनक नहीं है। कतिपय लेखकों से संबंधित सूचनाऍं त्रुटिपूर्ण भी हैं, तथापि यह पुस्तक इतनी अधिक जानकारियॉं अपने आप में समेटे हुए है कि संग्रहणीय और पठनीय बन पड़ी है। अस्सी वर्षीय डॉ. गौरी नाथ झा पुस्तक के दूसरे खंड की भी तैयारी में हैं, जिसमें छूटे हुए साहित्यकारों का परिचय वे प्रस्तुत करेंगे। उनका यह जीवट प्रणम्य है।
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पुस्तक प्राप्ति के लिए संपर्क सूत्र
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श्री रतिनाथ पुस्तकालय, साहबान खूँट, पत्रालय : भटोत्तर चकला, जिला : पूर्णिया 854203 (बिहार)
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संपर्क : डॉ. गौरी नाथ झा (मोबाइल : 08677916394)</div>देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-19754640766187172482011-12-08T01:24:00.000-08:002011-12-08T01:42:25.567-08:00सरला राय की कृति : पूर्णियॉं के साहित्यकारकोसी अंचल की दिवंगत लेखिका सरला राय की एक महत्वपूर्ण आलोचनात्मक कृति है 'पूर्णियाँ के साहित्यकार'। इसका प्रकाशन 1991 में तूलिका प्रकाशन, नई दिल्ली से हुआ था। सरला जी ने अपनी कृति में बांग्ला, मैथिली, उर्दू और हिन्दी के आठ लेखकों के जीवन और कृतित्व पर इस पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। ये लेखक हैं--बांग्ला के केदारनाथ बंद्योपाध्याय एवं सतीनाथ भादुड़ी, मैथिली के कुमार गंगानंद सिंह एवं लिली रे, उर्दू के वफा मलिकपुरी एवं तारिक जमीली तथा हिन्दी के लक्ष्मीनारायण सुधांशु एवं फणीश्वरनाथ रेणु। <div>कहने की जरूरत नहीं कि अपनी अपनी भाषाओं में पूर्णिया जिले के इन साहित्यकारों ने राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी विशिष्ट पहचान कायम की है। लेखिका का विचार कुछ अन्य साहित्यकारों का परिचय प्रस्तुत करनेवाले पुस्तक के आगामी खंड भी प्रकाशित करवाने का था, लेकिन वह संभव नहीं हो पाया। सरला जी ने अपने लेखों में उक्त साहित्यकारों का न केवल पारिवारिक विवरण और जीवन प्रस्तुत किया है, वरन उनकी प्रकाशित-अप्रकाशित कृतियों की सूची देते हुए उनके साहित्यिक दाय और महत्व का प्रतिपादन भी भली-भॉति किया है।</div>देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-1952625076799106492011-10-24T01:11:00.000-07:002011-10-24T01:26:48.911-07:00कविता कोसी : कोसी अंचल की साहित्यिक विरासत<a href="http://1.bp.blogspot.com/-mmmMSHwpB-0/TqUgXAg9SDI/AAAAAAAAAGU/FSQ-0Go8gKQ/s1600/K_kosi.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 132px; height: 200px;" src="http://1.bp.blogspot.com/-mmmMSHwpB-0/TqUgXAg9SDI/AAAAAAAAAGU/FSQ-0Go8gKQ/s200/K_kosi.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5666971285762951218" /></a><br />युवा कवि, आलोचक-संपादक देवेन्द्र कुमार देवेश ने <a href="http://kavita-kosi.blogspot.com/2009/12/blog-post_15.html">कोसी अंचल</a> (सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया जिलों) में जन्मे अथवा यहॉं के निवासी रचनाकारों द्वारा रचित पद्य साहित्य को उसके समालोचनात्मक आकलन के साथ क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप में 'कविता कोसी' शीर्षक से प्रकाशित करने का प्रशंसनीय कार्य किया है। 'कविता कोसी' के अब तक (2009 ई.) पॉंच खंड प्रकाशित हैं, जिनकी प्रकाशक हैं <a href="http://www.blogger.com/profile/02564204009310093125">अनीता पंडित</a> प्रत्येक खंड में डॉ. कामेश्वर पंकज द्वारा लिखित समालोचनात्मक आलेख पुस्तक के प्रारंभ में दिया गया है। <div><br /></div><div><a href="http://www.scribd.com/doc/33696115/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A3-%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AE%E0%A4%95-%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96">डॉ. वरुण कुमार तिवारी द्वारा लिखित यह संपूर्ण आलेख पढ़ने लिए यहॉं क्लिक करें।</a></div>देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-60063965563073572752011-04-18T14:20:00.000-07:002011-05-27T21:47:59.942-07:00कविता कोशी तीर की<a href="http://2.bp.blogspot.com/-o1jZI2T7wk8/Ta_rdlYeyUI/AAAAAAAAAGI/NjCyeUdffx8/s1600/scan-3.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 126px; height: 200px;" src="http://2.bp.blogspot.com/-o1jZI2T7wk8/Ta_rdlYeyUI/AAAAAAAAAGI/NjCyeUdffx8/s200/scan-3.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5597951755328342338" /></a><br />'कविता कोसी तीर की' बिहार प्रगतिशील लेखक संघ, पटना द्वारा 1997 में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण कविता-संग्रह है, जिसके संपादक प्रभुनारायण विद्यार्थी हैं। इस संग्रह में कोसी अंचल के मधेपुरा जिला निवासी साठ नए-पुराने कवियों की कविताऍं और उनके संक्षिप्त परिचय का समावेश किया गया है। संग्रह के आरंभ में विद्यार्थी जी के संपादकीय के साथ-साथ 26 पृष्ठों का एक लंबा आलेख भी लिखा है, जिसमें उन्होंने मधेपुरा जिला की काव्य-साधना की परंपरा, विकास और समकालीन साहित्यिक विमर्श को आकलित किया है। पुस्तक की भूमिका प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डॉ. खगेन्द्र ठाकुर ने लिखी है, जिसमें उन्होंने सर्जनात्मक सांस्कृतिक इतिहास तैयार करने के इस प्रयास का अभिनंदन किया है।<div>संग्रह में गोपीनाथ महाराज, विश्वनाथ महाराज, जिद्दत मधेपुरवी, भोलानाथ मायल, मनमोहन महाराज, यदुनाथ झा यदुवर, पुलकित लाल दास मधुर, युगल शास्त्री प्रेम, सत्यनारायण पोद्दार सत्य, प्रभाकर कवि, विद्याकर कवि जैसे पुराने कवियों के साथ-साथ हरिमोहन मिश्र, भगवानचंद्र विनोद, इंदुबाला देवी, <a href="http://kosi-sahitya.blogspot.com/2010/12/blog-post_31.html">हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ</a>, देवनारायण पासवान देव, महेन्द्रनारायण मस्ताना, सुरेन्द्र प्रसाद साह, रमेन्द्र यादव रवि, सुबोध सुधाकर, बसंत, मंजुश्री वात्स्यायन, <a href="http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3_%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5_'%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80'">भूपेन्द्रनारायण यादव मधेपुरी</a>, विनय कुमार चौधरी, शब्बीर अहमद, शंभूशरण भारतीय, आर्या दास, <a href="http://janshabd.blogspot.com/2010/09/blog-post.html">शांति यादव</a>, जनार्दन यादव, <a href="http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%AF_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9">संजय कुमार सिंह</a>, <a href="http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6_%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B5">अरविन्द श्रीवास्तव</a>, <a href="http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%89%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B8_%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A5%80">उल्लास मुखर्जी </a>आदि मधेपुरा निवासी प्रमुख कवियों की कविताओं का संकलन किया गया है।</div>देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-158665622022570322011-01-13T04:18:00.000-08:002011-05-27T21:08:17.627-07:00बच्चा यादव द्वारा संपादित 'कथा-कोशी'<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TS8MeKEkLbI/AAAAAAAAAF8/GLxmukRW6CU/s1600/Katha%2BKosi.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 133px; height: 200px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TS8MeKEkLbI/AAAAAAAAAF8/GLxmukRW6CU/s200/Katha%2BKosi.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5561677777064963506" /></a><br /><div style="text-align: justify;">कोसी अंचल के प्रतिष्ठित अध्येता बच्चा यादव के संपादन में रचनाकार प्रकाशन, पूर्णिया से 1997 में प्रकाशित कहानी-संचयन 'कथा-कोशी' कोसी अंचल के समकालीन कथा परिदृश्य से परिचय करानेवाली महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक के मुखपृष्ठ पर हिन्दी के प्रख्यात कथाकारों फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की ऐसी दुर्लभ तस्वीर प्रकाशित है, जिसमें वे दोनों धान की रोपाई का काम कर रहे हैं। पुस्तक में वरिष्ठ-कनिष्ठ 43 कथाकारों की कहानियॉं संकलित हैं। साथ ही कोसी अंचल के तत्कालीन कथा-परिदृश्य की पड़ताल करते हुए धनेशदत्त पांडेय का आलेख 'रेणु माटी के कथाकार' और कल्लोल चक्रवर्ती का आलेख 'रेणु की कथा-परंपरा का प्रकाशन भी किया गया है। </div><div style="text-align: justify;">संकलन में शामिल कथाकारों में चंद्रकिशोर जायसवाल, रामधारी सिंह दिवाकर, विजयकांत, महाप्रकाश, कमला प्रसाद बेखबर, नवरंग प्रसाद जायसवाल, राधा प्रसाद, सरला राय, कृतनारायण प्यारा, हरि दिवाकर, अनिलचंद्र ठाकुर, धनेश दत्त पांडेय, वसंत कुमार राय, सुबोध कुमार झा, देवशंकर नवीन, कल्लोल चक्रवर्ती, संजीव ठाकुर, संजय कुमार सिंह और रणविजय सिंह सत्यकेतु प्रमुख हैं। </div><div style="text-align: justify;">बच्चा यादव ने संकलन की भूमिका में कोसी अंचल की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करने का सफल प्रयास किया है। उल्लेखनीय है कि बच्चा यादव (जन्म फरवरी 1958, महथवा, अररिया) की गवेषणात्मक रचनाऍं 'हिन्दुस्तान', 'आज', पाटलिपुत्र टाइम्स', 'गंगा' आदि पत्र-पत्रिकाओं में बराबर स्थान पाती रही हैं। वे बिहार सरकार के अधिकारी हैं तथा 'मुहिम' (त्रैमासिक) पत्रिका के संपादन से जुड़े रहे हैं।</div>देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-28305326565210151202010-12-31T02:54:00.000-08:002011-05-25T14:54:13.277-07:00कोशी अंचल की अनमोल धरोहरें : हरिशंकर श्रीवास्तव 'शलभ'<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TSG9PHiuysI/AAAAAAAAAF0/LN1FmDTgFKM/s1600/scan0001.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 148px; height: 200px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TSG9PHiuysI/AAAAAAAAAF0/LN1FmDTgFKM/s200/scan0001.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5557931482572311234" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TR29OCaHX1I/AAAAAAAAAFs/C_X73Bwc4js/s1600/kosi%2Banchal%2Bki%2Banmol%2Bdharoharen.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 126px; height: 200px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TR29OCaHX1I/AAAAAAAAAFs/C_X73Bwc4js/s200/kosi%2Banchal%2Bki%2Banmol%2Bdharoharen.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5556805564107284306" /></a>कोसी अंचल के प्रतिष्ठित लेखक हरिशंकर श्रीवास्तव 'शलभ' की पुस्तक 'कोशी अंचल की अनमोल धरोहरें' कोसी अंचल की साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत को सामने लानेवाली महत्वपूर्ण दस्तावेजी पुस्तक है। ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक निबंधों के इस संग्रह को समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर द्वारा 2005 ई. में प्रकाशित किया गया है। संग्रह में अंचल की धार्मिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों, गंधवरिया राजवंश एवं उसकी सांगीतिक धरोहरों, लोकदेवों, जननायक भीम कैवर्त और कोशी गीत पर लिखित आलेखों के अलावा अंचल के दस प्रतिष्ठित एवं महत्वपूर्ण लेखकों के व्यक्ितत्व एवं कृतित्व का समुचित परिचय प्रस्तुत किया गया है। ये दस लेखक हैं : यदुनाथ्ा झा यदुवर, पं. छेदी झा द्विजवर, पुलकित लालदास मधुर, पं. युगल शास्त्री प्रेम, सत्यनारायण पोद्दार सत्य, राधाकृष्ण चौधरी, परमेश्वरी प्रसाद मंडल, पं. राधाकृष्ण झा किसुन, प्रबोध नारायण सिंह तथा लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव। इन लेखकों पर प्रस्तुत सामग्री संस्मरणात्मक भी है और उनकी रचनाओं का परिशीलन करते हुए उनके साहित्यिक अवदान का रेखांकन भी।<div> <div>श्री शलभ का जन्म 1 जनवरी 1934 ई. को मधेपुरा (बिहार) में हुआ था। बिहार सरकार की सेवा करते हुए कल्याण पदाधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त श्री शलभ ने हिन्दी भाषा एवं साहित्य में स्नातकोत्तर तथा विधि स्नातक की उपाधियॉं प्राप्त की हैं। आपकी अन्य प्रकाशित कृतियॉं निम्नांकित हैं : अर्चना (गीत-संग्रह, 1951), आनंद (खंड काव्य, 1960), एक बनजारा विजन में ( कविता-संग्रह, 1989), मधेपुरा में स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास (1996), शैव अवधारणा और सिंहेश्वर स्थान (1998), मंत्रद्रष्टा ऋष्यशृंग (2003) तथा़ अंगिका लिपि की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (2006)।</div></div>देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-18524766129763336782010-12-08T23:51:00.000-08:002011-05-27T21:45:43.712-07:00महिषी की तारा : इतिहास और आख्यान<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TQDLTCbB0BI/AAAAAAAAAFg/eYozxXp5z1Y/s1600/Title.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 129px; height: 200px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TQDLTCbB0BI/AAAAAAAAAFg/eYozxXp5z1Y/s200/Title.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5548658268848640018" /></a><br />डॉ. तारानंद वियोगी कोसी अंचल के महिषी स्िथत सिद्धपीठ तारास्थान पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है, जो 'महिषी की तारा : इतिहास और आख्यान' के नाम से नवारंभ (पटना) द्वारा 2010 में प्रकाशित की गई है। पुस्तक तीन अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में महिषी का सांस्कृतिक इतिहास और द्वितीय अध्याय में तारा-साधना का प्राचीन इतिहास निबद्ध किया गया है। प्रकारांतर से महिषी का सांस्कृतिक इतिहास कोसी अंचल का सांस्कृतिक इतिहास भी है। तृतीय अध्याय में तारा-तंत्र-साधना के महत्व और स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। ध्यातव्य है कि सिद्धपीठ महिषी का ज्ञात इतिहास तीन हजार वर्ष पुराना है। भगवान बुद्ध का आगमन भी यहॉं हुआ था। उस समय भी यहॉं की उन्नत सांस्कृतिक विशिष्टता ने उनका ध्यान आकृष्ट किया था। पूर्व में यह किरातों का क्षेत्र था। महाभारत काल में पांडवों ने यहॉं की किरात जातियों से वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए थे। आगे चलकर आर्य एवं किरातों के समन्वय के पश्चात यहॉं एक मिश्रित संस्कृति का विकास हुआ। बौद्धकाल में भी बड़ी संख्या में यहॉं के लोग बौद्धावलंबी हुए। मौर्यकाल में बौद्ध गतिविधियों की यहॉं काफी सक्रियता रही। <div>उक्त सांस्कृतिक विविधता के अलावा कोसी अंचल का यह परिसर मौर्य, गुप्त, पाल, शुंग, काण्व, आंध्र, कुषाण, नाग, वाकाटक, हर्षवर्धन, मिथिला नरेश आदि शासकों द्वारा शासित होता रहा। राजनीतिक उथल-पुथल, सांस्कृतिक वैविध्य और कोसी नदी के विकराल तांडव ने कोसी अंचल की सभ्यता-संस्कृति को गहरे प्रभावित किया है। तारानंद वियोगी ने अपनी पुस्तक में सांस्कृतिक इतिहास को खंगालते हुए यह स्थापित किया है कि महिषी की तारा मूलत: एक बौद्ध देवी हैं, जिन्हें सभी बुद्धों की माता का स्थान प्राप्त है। </div><div>महिषी (सहरसा) में 12 मई 1966 को जन्मे डॉ. तारानंद वियोगी हिन्दी एवं मैथिली के प्रतिष्ठित लेखक हैं, जिनकी मौलिक-संपादित दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।</div>देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-74428653269715114262010-10-26T23:17:00.000-07:002011-05-27T21:27:14.973-07:00नदियॉं गाती हैं : कोसी-केन्द्रित अध्ययन<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TMfIzFSiWaI/AAAAAAAAAFY/KSRop0iD8Js/s1600/NADIYA-GATI-HAIN.png"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 149px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TMfIzFSiWaI/AAAAAAAAAFY/KSRop0iD8Js/s200/NADIYA-GATI-HAIN.png" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5532611447166753186" /></a><br /><div style="text-align: left;">'नदियॉं गाती हैं' प्रतिष्ठित लोकसाहित्य अध्येता डॉ. ओमप्रकाश भारती की प्रथम पुस्तक है, जिसका पहला संस्करण 2001 ई. में और द्वितीय संस्करण 2009 ई. में धरोहर (साहिबाबाद, गाजियाबाद) से प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तक में भारती जी ने कोसी नदी का लोकसांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया है। इस क्रम में उन्होंने कोसी नदी और अंचल से संबंधित भूगोल, इतिहास, समाज और लोकसाहित्य का विवेचन प्रस्तुत करते हुए कोसी नदी से संबंधित पचास लोकगीतों को संगृहीत किया है। पुस्तक में ई. टी. प्रीडो द्वारा संकलित और 'मेन इन इंडिया' में 1943 ई; में प्रकाशित कोसी गीतों के अंग्रेजी भावांतर भी शामिल किए गए हैं।</div><div style="text-align: left;">पुस्तक की प्रस्तावना प्रतिष्ठित विद्वान कोमल कोठारी ने लिखी है, जबकि अपनी भूमिका में डॉ. भारती ने सृजन की संवेदना पर बात करते हुए लोक साहित्य के प्रति अपने समर्पण को ही रेखांकित किया है। पुस्तक के प्रारंभिक छह अध्याय हैं--'कोसी नदी का भौगोलिक स्वरूप', 'कोसी : मिथ और लोक इतिहास', 'कोसी के लोगों का पारंपरिक ज्ञान', कोसीनदी गीतों का समाजशास्त्रीय पक्ष', 'कोसी नदी के गीतों का पुरासंगीतशास्त्रीय स्वरूप' तथा 'कोसी नदी के गीतों का संगीतशास्त्रीय स्वरूप'। सातवें अध्याय के रूप में भारती जी ने गीतों की खोज में भटकते हुए एक संस्मरण और रिपोर्ताज प्रस्तुत किया है। आठवें अध्याय के अंतर्गत तीन त्रासद और मार्मिक संस्मरणों की प्रस्तुतियॉं हैं। पुस्तक के परिशिष्ट में कोसी नदी से जुड़े कुछ नक्शे और छायाचित्र भी सम्मिलित हैं।</div><div><br /></div>देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-58855183115499604582010-09-07T01:34:00.000-07:002011-05-27T21:57:45.829-07:00कोशी की संस्कृति : कुछ अनछुए प्रसंग<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TIX_mq4C3lI/AAAAAAAAAEg/0V3ga5prOyQ/s1600/koshi+ke+anchhuve+prasang.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 145px; height: 200px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TIX_mq4C3lI/AAAAAAAAAEg/0V3ga5prOyQ/s320/koshi+ke+anchhuve+prasang.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5514094358594510418" /></a><br />'कोशी की संस्कृति : कुछ अनछुए प्रसंग' शीर्षक पुस्तक डॉ. रेणु सिंह के संपादन में भारती प्रकाशन, वाराणसी से 2009 में प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में कोसी अंचल की सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, दार्शनिक, पुरातात्िवक और ऐतिहासिक धरोहरों को उद्घाटित और रेखांकित करने के उद्देश्य से तेरह विद्वानों के आलेखों को संकलित किया गया है। पुस्तक के अंत में कोसी अंचल की धरोहरों के छायाचित्र भी प्रकाशित किए गए हैं।<div>कोसी अंचल में नागपूजन की परंपरा पर डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह 'मौन' का आलेख, मंडन मिश्र पर केन्द्रित आचार्य धीरज का आलेख, गंधवरिया राजवंश और संगीत परंपरा पर श्री हरिशंकर श्रीवास्तव 'शलभ' का आलेख, अगस्त क्रांति और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कोसी अंचल की भूमिका पर डॉ. प्रभुनारायण विद्यार्थी का आलेख और कोसी अंचल की पांडित्य परंपरा पर डॉ. रेणु सिंह का आलेख हमारा ज्ञानवर्द्धन करते हैं और कोसी अंचल से जुडे् अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं से हमारा परिचय कराते हैं। </div><div>कोसी की संस्कृति पर केन्द्रित डॉ. ओमप्रकाश पांडेय, डॉ. अरविन्द महाजन और श्री आदित्य श्रीवास्तव के आलेख भी महत्वपूर्ण हैं, वहीं गढ्बनैली राज की भूमिका पर डॉ. प्रतापनारायण सिंह का आलेख अपनी ही तरह का है। मुल्ला दाऊद के 'चांदायन' में उल्लेखित कुछ महत्वपूर्ण स्थानों की पहचान डॉ. रमेशचंद्र वर्मा ने कोसी अंचल के विभिन्न स्थलों के रूप में की है। कोसी अंचल के विश्वप्रतिष्ठ कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु के 'मैला आंचल' के हवाले से डॉ. विभाशंकर ने आंचलिकता और राष्ट्रीयता के विन्दुओं पर सार्थक विमर्श प्रस्तुत किया है।</div><div>पुस्तक में दो आलेख अंग्रेजी में हैं, जिनमें से पहला श्री उमेश कुमार सिंह ने लिखा है और अपने आलेख में बुद्धकालीन अंगुत्तराप और आपण-निगम की पहचान कोसी अंचल के क्षेत्र के रूप में की है। दूसरा आलेख डॉ. पी.के. मिश्र का है, जिसमें उन्होंने कोसी अंचल के अद्यतन पुरातात्विक खोजों का उल्लेख किया है। </div><div>पुस्तक की संपादिका डॉ. रेणु सिंह संप्रति राजेन्द्र मिश्र महाविद्यालय, सहरसा, बिहार में प्रधानाचार्य हैं। आप द्वारा संपादित यह पुस्तक एक अमूल्य योगदान है। आपकी पूर्व प्रकाशित आलोचना कृति 'सत्यकाम : काव्य और दर्शन' को भी पाठकों की पर्याप्त प्रशंसा प्राप्त हुई थी।</div>देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-56232959377906420892010-08-25T01:45:00.000-07:002011-05-27T21:42:14.168-07:00कोसी की दग्ध अंतर-कथा<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TIX35EYIIRI/AAAAAAAAAEQ/7FsI8IGMsJQ/s1600/005.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 249px; height: 320px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TIX35EYIIRI/AAAAAAAAAEQ/7FsI8IGMsJQ/s320/005.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5514085878584582418" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TIX3wLM5VwI/AAAAAAAAAEI/VieebAeeEKc/s1600/Koshi+Ki.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 208px; height: 320px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TIX3wLM5VwI/AAAAAAAAAEI/VieebAeeEKc/s320/Koshi+Ki.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5514085725797701378" /></a><br />हाल ही में कर्नल अजित दत्त के शोधपूर्ण आलेखों का संग्रह 'कोसी की दग्ध अंतर-कथा' के नाम से संवदिया प्रकाशन, अररिया से प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तक में कुल 16 लेख संकलित हैं, जिनमें कोसी नदी और अंचल से जुड़ी ऐतिहासिक, पौराणिक, मिथकीय और समसामयिक विषय-वस्तुओं और संदर्भों का रोचक प्रस्तुतीकरण किया गया है। लेखक के अनुभवों और ज्ञान से पाठक अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकता। ये लेख लोक साहित्य और संस्कृति के विस्मृत पहलुओं को भी सामने लाते हैं। कुछ महत्वपूर्ण विषय हैं--भगैत गायन, लोक देव, लोक देवियॉं, ईलोजी, सुल्तान माई, परवाहा युद्ध, फरमान नदी, कोसी नदी, वीरनगर विसहरिया, बल्िदयाबाड़ी का युद्ध, सिंहेश्वर थान, कोसी अंचल की ऐतिहासिक धरोहरें।<br />कर्नल अजित दत्त का जन्म 18 जुलाई, 1948 ई. को कोसी अंचल के मधेपुरा जिलांतर्गत हनुमान नगर में हुआ। आपकी प्रारंभिक शिक्षा ली एकेडमी, फारबिसगंज में हुई, बाद में आपने पटना विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। आपने 1971 ई. में कमीशंड ऑफिसर के रूप में भारतीय सेना में अपने कार्यजीवन की शुरुआत की और बाद में पैराशूटिंग फोर्स के लिए चुन लिए गए, फिर एलीट स्ट्राइक फोर्स से जुड़े और लखनऊ के एडमिनिस्ट्रेटिव कंमांडेंट के रूप में कार्य किया। पर्वतारोहण आपका खास शौक रहा और भारत एवं विदेशों में आपने दो दर्जन से अधिक अभियानों में सफल भागीदारी की।<br />कर्नल दत्त की उपलब्धियों में भारत के राष्ट्रपित द्वारा सेना मेडल सम्मान (गैलेंट्री)-1992, चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ्स कमांडेशन कार्ड'1976 एवं 1996 तथा जनरल दौलत सिंह ट्रॉफी अवार्ड-1986 शामिल हैं। आप रॉयल ज्योग्राफिकल सोसायटी, लंदन के फेलो (1991) रहे और बार्सीलोना (स्पेन) एवं नेवादा (अमेरिका) में क्रमश: 1991 एवं 1992 में आयोजित इंटरनेशनल मीट ऑफ यू.आई.ए. माउंटेनियरिंग कमीशन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। आपने हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट, दार्जीलिंग (मई 1990-फरवरी 1995) तथा नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग, उत्तरकाशी (मई 1997-नवंबर 2000) के प्रिंसिपल के रूप में भी कार्य किया। आप पश्चिम बंगाल सरकार के मानद वाइल्ड लाइफ वार्डन हैं। आपने पर्वतारोहण के उद्देश्य से स्विटजरलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड, नेपाल और भूटान देशों की यात्रा की है।<br />कर्नल अजित दत्त ने अंग्रेजी और हिन्दी में अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की है। आपके आलेख प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते रहे हैं। आपकी अन्य प्रकाशित पुस्तकें हैं--अंग्रेजी में--कॉल ऑफ द वैली (Call of the valley, 1991), ब्रेव शेरपाज (Brave Sherpas, 1993), क्लाइंबिंग एडवेंचर इन अरुणाचल (Climbing adventure in Arunachal, 1994), फर्स्ट क्लाइंब ऑफ माउंट मुकुट ईस्ट (First climb of Mount Mukut East, 1999), फारबिसगंज जंक्शन (Forbeseganj Junction, 1998), दस स्पोक नचिकेता (Thus spoke Nachiketa, 2000) तथा हिन्दी में--नचिकेता उवाच (2000) एवं अभियान कथा (2005)।<br /><span style="font-weight:bold;">उक्त पुस्तक प्राप्त करने के लिए निम्नांकित पते पर संपर्क किया जा सकता है :<span style="font-weight:bold;"></span></span><br />संवदिया प्रकाशन, जयप्रकाश नगर, वार्ड नं. 7, अररिया, बिहार 854311,<br />ई-मेल : samvadiapatrika@yaoo.comदेवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-88670846646079679862010-07-15T22:39:00.000-07:002011-05-27T21:15:02.915-07:00शांति सुमन की गीत रचना और दृष्टि<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TERIZJ1eCAI/AAAAAAAAACQ/DiBdLMFezkU/s1600/shanti.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 212px; height: 320px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TERIZJ1eCAI/AAAAAAAAACQ/DiBdLMFezkU/s320/shanti.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5495597042272962562" /></a><br />हिन्दी एवं मैथिली की प्रतिष्ठित कवयित्री और गीतकार डॉ. शांति सुमन की समग्र रचनात्मकता पर केन्द्रित पुस्तक 'शांति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि' के नाम से सुमन भारती प्रकाशन, जमशेदपुर द्वारा 2009 में किया गया है, जिसके संपादक हैं श्री दिनेश्वर प्रसाद सिंह 'दिनेश'। पुस्तक केन्द्र, वृत्त और परिधि शीर्षक तीन खंडों में विभाजित है। 'केन्द्र' शीर्षक खंड में शांति सुमन के जनवादी गीतों पर 13 आलोचकों के विचारों का समावेश है, जिनमें प्रमुख हैं--डॉ. शिवकुमार मिश्र, डॉ. विजेन्द्र नारायण सिंह, डॉ. मैनेजर पांडेय, डॉ. रविभूषण, श्री रामनिहाल गुंजन, डॉ. चंद्रभूषण तिवारी और श्री ओमप्रकाश ग्रेवाल। इस खंड में श्री कुमारेन्द्र पारसनाथ सिंह, श्री मदन कश्यप, श्री नचिकेता, श्री रमेश रंजक और श्री माहेश्वर की आलोचनात्मक टिप्पणियॉं भी शामिल हैं। इसी खंड में शांति सुमन के नवगीतों पर 12 आलोचनात्मक आलेख भी प्रकाशित हैं। ये आलेख श्री राजेन्द्र प्रसाद सिंह, श्री उमाकांत मालवीय, डॉ. रेवती रमण, डॉ. सुरेश गौतम, श्री सत्यनारायण, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद, डॉ. वशिष्ठ अनूप, श्री ओम प्रभकर, श्री विश्वंभरनाथ उपाध्याय, श्री कुमार रवीन्द्र और डॉ. अरविन्द कुमार द्वारा प्रस्तुत किए गए है।<br />'वृत्त' शीर्षक खंड के अंतर्गत शांति सुमन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संपादक का एक लेख और लेखिका का आत्मकथ्य प्रकाशित किया गया है। 'परिधि' शीर्षक खंड के अंतर्गत शांति सुमन की गद्य-पद्य कृतियों पर समीक्षाऍं शामिल की गई हैं। पुस्तक के अंत में शांति सुमन के कुछ चुने हुए गीत प्रकाशित किए गए हैं।<br />15 सितंबर, 1944 को कोसी अंचल के एक गॉंव कासिमपुर (सहरसा) में जन्मी शांति सुमन ने अपनी किशोरावस्था से ही कविताऍं लिखना शुरू कर दिया था, जब वो आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं। उनकी पहली गीत-रचना त्रिवेणीगंज, सुपौल से प्रकाशित होनेवाली पत्रिका 'रश्मि' (संपादक : तारानंद तरुण) में छपी थी। लंगट सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर से हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त शांति सुमन ने महंत दर्शनदास महिला कॉलेज में आजीविका पाई और 33 वर्षों तक प्राध्यापन के बाद वहीं से प्रोफेसर एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद से 2004 में सेवामुक्त हुईं। 'आधुनिक हिन्दी काव्य में मध्यवर्गीय चेतना' विषय पर पीएच. डी. उपाधि प्राप्त डॉ. शांति सुमन के हिन्दी में अब तक दस नवगीत संग्रह--'ओ प्रतीक्षित' (1970), 'परछाईं टूटती' (1978), 'सुलगते पसीने' (1979), 'पसीने के रिश्ते' (1980), 'मौसम हुआ कबीर' (1985, 1999),'तप रहे कँचनार' (1997), 'भीतर-भीतर आग' (2002), 'पंख-पंख आसमान' (2004), 'एक सूर्य रोटी पर' (2006) एवं 'धूप रंगे दिन' (2007) , और 'मेघ इंद्रनील' (1991) नामक मैथिली गीत संग्रह प्रकाशित हैं। इनके अतिरिक्त उनका एक हिन्दी उपन्यास 'जल झुका हिरन' (1976) और शोधप्रबंध पर आधारित आलोचनात्मक पुस्तक 'मध्यवर्गीय चेतना और हिन्दी का आधुनिक काव्य' (1993) प्रकाशित हैं।<br />'सर्जना' (1963-64, तीन अंक प्रकाशित), 'अन्यथा' (1971) और 'बीज' नामक पत्रिकाओं के संपादन से संबद्ध रही शांति सुमन ने 1967 से 1990 के दौरान कवि सम्मेलनों एवं मंचों पर अपनी गीत-प्रस्तुति से अपार यश अर्जित किया। अपनी धारदार गीत सर्जना के लिए हिन्दी संसार मे विशिष्ट पहचान रखनेवाली डॉ. शांति सुमन को को विभिन्न पुरस्कार-सम्मानों से विभूषित किया गया है, जिनमें शामिल हैं--'भिक्षुक' (मुजफ्फरपुर का पत्र) द्वारा सम्मानपत्र, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का साहित्य सेवा सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग) का कविरत्न सम्मान, बिहार सरकार के राजभाषा विभाग का महादेवी वर्मा सम्मान, अवंतिका (दिल्ली) का विशिष्ट साहित्य सम्मान, मैथिली साहित्य परिषद का विद्यावाचस्पति सम्मान, हिन्दी प्रगति समिति का भारतेन्दु सम्मान एवं सुरंगमा सम्मान, विंध्य प्रदेश से साहित्य मणि सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन का साहित्य भारती सम्मान (2005) तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का सौहार्द सम्मान (2006)देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-40894634660032672102010-01-13T21:33:00.000-08:002011-05-27T21:20:40.915-07:00डॉ. मधुकर गंगाधर : संदर्भ और साधना<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TERIx7ksBQI/AAAAAAAAACY/i_ilJP0vxY8/s1600/madhukar.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 207px; height: 320px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/TERIx7ksBQI/AAAAAAAAACY/i_ilJP0vxY8/s320/madhukar.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5495597467941209346" /></a><br />हिन्दी के प्रतिष्ठित कथाकार डॉ. मधुकर गंगाधर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित एक पुस्तक डॉ. रमेश नीलकमल ने संपादित की है, जो 2009 में मुकुल प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है। पुस्तक का नाम है : डॉ. मधुकर गंगाधर : संदर्भ और साधना। इस पुस्तक शामिल 45 आलेखों के माध्यम से मधुकर गंगाधर के व्यक्तित्व और कृतित्व के विभिन्न आयामों को सामने लाने और उनके रचनात्मक अवदान को मूल्यांकित करने का प्रयत्न किया गया है। पुस्तक में शामिल कुछ लेखकों के नाम हैं : कलक्टर सिंह केसरी, गोपी वल्लभ सहाय, गंगा प्रसाद विमल, राजेन्द्र अवस्थी, भगवतीशरण मिश्र, बलदेव वंशी, गोपेश्वर सिंह, श्याम सुंदर घोष, मधुकर सिंह, विजेन्द्र अनिल, देवशंकर नवीन, संजय कुमार सिंह, सुरेन्द्र प्रसाद जमुआर, नरेश पांडेय चकोर, कमला प्रसाद बेखबर, उदभ्रांत, रणविजय सिंह सत्यकेतु।<br />मधुकर गंगाधर का जन्म पूर्णिया जिले के झलारी गॉंव में 1933 ई. में हुआ था। वे उनतीस वर्ष तक ऑल इंडिया रेडियो की सेवा से जुड़े रहे। अनेक विधाओं में लेखन किया। उनकी प्रकाशित कृतियों में दस कहानी-संग्रह, आठ उपन्यास, चार कविता-संग्रह, तीन संस्मरण पुस्तकें, तीन नाठक और चार अन्य विधाओं की रचनाऍं शामिल हैं। उपन्यासों के नाम हैं-मोतियों वाले हाथ (1959), यही सच है (1963), फिर से कहो (1964), उत्तरकथा (1965), सुबह होने तक (1968), सातवीं बेटी (1976), गर्म पहलुओं वाला मकान (1981) तथा जयगाथा। कहानी-संग्रह हैं- नागरिकता के छिलके (1956), तीन रंग:तेरह चित्र (1958), हिरना की ऑंखें (1959), गर्म गोश्त:बर्फीली तासीर (1965), शेरछाप कुर्सी (1976), गॉंव कसबा नगर (1982), उठे हुए हाथ (1983), मछलियों की चीख (1983), सौ का नोट (1986) तथा बरगद (1988)।<br />मधुकर गंगाधर अपनी पहली कहानी 'घिरनीवाली' (योगी, साप्ताहिक, पटना) के साथ 1955 ई. में प्रकाश में आए, जो सर्विस लैट्रिन साफ करनेवाली एक खूबसूरत मेहतरानी के वैयक्तिक अंतर्विरोध पर लिखी गई थी। यह काल 'नई कहानी आंदोलन' के रूप में प्रतिष्ठित कहानियों की रचना का काल है, जिनके आधार पर सातवें दशक के पूर्वार्द्ध में 'नई कहानी' की प्रवृत्तियों को विश्लेषित, व्याख्यायित करके उसे एक कथाधारा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। उक्त कालखंड में लिखी डॉ. गंगाधर की कहानियॉं पहले 'तीन रंग : तेरह चित्र' (1958), हिरना की ऑंखें (1959) तथा 'गर्म गोश्त : बर्फीली तासीर (1959) कहानी-संग्रहों में प्रकाशित हुई थीं, जिन्हें एक साथ 'गॉंव कसबा नगर' कहानी-संग्रह में पढ़ते हुए 'नई कहानी' की नवीनता को विविध रूपों में देखा जा सकता है। डॉ. गंगाधर को मुख्यत: ग्रामीण परिवेश का रचनाकार ही माना जाता रहा है, परंतु इस संदर्भ में उनका अपना वक्तव्य यह है--''जब तक गॉंव में था, गॉंव की कहानियॉं लिखीं। शहर में रहकर यहॉं के जीवन, संघर्ष, मानसिकता से एकाकार होने पर पर शहर की कहानियॉं लिखता रहा हूँ। वस्तुत: मैं तो आदमी के संघर्ष और उसकी विजय की खोज में रहा हूँ-वह गॉंव का परिवेश हो, शहर का परिवेश हो या कस्बे का परिवेश।''<br />वास्तव में डॉ. मधुकर गंगाधर एक निरंतर रचनाशील व्यक्तित्व का नाम है, जिसने न केवल कहानी, वरन उपन्यास, नाटक, कविता, रेडियो रूपक, आलोचना आदि विधाओं में भी अपनी सशक्त कलम चलाई है तथा अपनी रचनात्मकता को श्रेष्ठता की कसौटी पर कसे जाने के लिए उसे मौलिक, नवीन और विशिष्ट स्वरूप में सर्वदा प्रस्तुत किया है। यही कारण है कि उनकी रचनाऍं प्रकाशित होने के साथ ही चर्चा का विषय रही हैं तथा बावजूद इसके कि वे अपने को किसी कथाधारा से संबद्ध नहीं मानते, उनकी रचनाऍं तत्कालीन समय की कथा-प्रवृत्तियों आंचलिक कहानी, नई कहानी, ग्राम कहानी, सचेतन कहानी, समांतर कहानी आदि के अंतर्गत परिगणित तथा समालोचित की जाती रही हैं।देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-16291331668022809412010-01-03T23:55:00.000-08:002011-05-27T21:28:08.574-07:00सुरेन्द्र स्निग्ध का उपन्यास 'छाड़न'<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/S0QzEOJ4fTI/AAAAAAAAABo/nZ2nLbkOcOc/s1600-h/Surinder+Snigdh.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 266px; height: 320px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/S0QzEOJ4fTI/AAAAAAAAABo/nZ2nLbkOcOc/s320/Surinder+Snigdh.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5423515998872960306" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/S0QzD0UwAbI/AAAAAAAAABg/4ZdjvssBxuQ/s1600-h/Chadan.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 214px; height: 320px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/S0QzD0UwAbI/AAAAAAAAABg/4ZdjvssBxuQ/s320/Chadan.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5423515991939219890" /></a><br />2009 में प्रतिष्ठित हिन्दी कवि और आलोचक डॉ. सुरेन्द्र स्निग्ध द्वारा लिखित उपन्यास 'छाड़न'(प्रथम संस्करण : 2005) का तीसरा संस्करण किताब महल, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित किया गया है। संप्रति पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में प्रोफेसर डॉ. स्निग्ध का जन्म पूर्णिया जिले के सिंघियान नामक गॉंव में 1952 ई. में हुआ था। वे 'गॉंव घर', 'भारती', 'नई संस्कृति' नामक पत्रिकाओं के संपादन से जुड़े रहे और 'प्रगतिशील समाज' के कहानी विशेषांक और 'उन्नयन' के बिहार-कवितांक का संपादन किया। स्निग्ध जी की तीन कविता पुस्तकें-'पके धान की गंध', 'कई कई यात्राऍं' और'अग्नि की इस लपट से कैसे बचाऊँ कोमल कविता' प्रकाशित हैं। उनकी प्रकाशित आलोचना कृतियॉं हैं-'सबद सबद बहु अंतरा' तथा 'नई कविता की नई जमीन'।<br />'छाड़न' में कोसी नदी की छाड़न धाराओं के साथ स्थित गॉंवों की कथा कही गई है। इसके कथानक में अनेक कथाऍं अनुस्यूत हैं। ये कथाऍं भी प्रकारांतर से समय-समाज की छाड़न कथाऍं ही हैं। इन कथाओं के कोलाज में जो अंतर्धारा आरंभ से अंत तक प्रवाहित है, वह है कोसी अंचल में सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक प्रभावान्विति की अंतर्धारा। उपन्यास में 1925 ई. में गॉंधी द्वारा कोसी अंचल की यात्रा से आरंभ कर 1975 ई. तक के चित्र प्रस्तुत किए गए हैं। अंतिम कुछ चित्रों में बीसवीं सदी के अंतिम दशक की परिस्थितियों को संकेतित करने का प्रयत्न किया गया है। प्रतिष्ठित हिन्दी कवि-आलोचक श्री अरुण कमल ने लेखक को अपने एक पत्र में उपन्यास पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है-'रेणु ने जहॉं 'मैला ऑंचल' को छोड़ा था, वहॉं से आपने आरंभ किया है...यह उपन्यास के क्षेत्र में एक नया प्रयोग है।...रिपोर्ताज, कथन, कविता, कथानक, चरित्र, राजनीति-सब मिलकर इसे एक विशिष्ट कलेवर प्रदान करते हैं। 'छाड़न' यानी नया सिक्का ढल रहा है।'<br />उपन्यास के आरंभ में महात्मा गॉंधी द्वारा पूर्णिया के 1925 और 1927 के तूफानी दौरे को रेखांकित किया गया है। उस समय जनता दोहरी, तिहरी गुलामी की चक्की में पिस रही थी। अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के लिए हिंसक-अहिंसक आंदोलनों का जो परिदृश्य था, उसके चित्रण के साथ-साथ लेखक ने जमींदारों के शोषण की चक्की में पिसती जनता की कथा भी सूक्ष्मता के साथ प्रस्तुत की है। अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ छापामार लड़ाई लड़नेवाले गरीबों के मसीहा नछत्तर मालाकार की लड़ाई पचास वर्षों बाद पूरे इलाके में नक्सलवादी आंदोलन में परिणत हो गई और वर्तमान राजनीति किस प्रकार विचारधारा-विहीन होकर जाति, संप्रदाय, आतंक के भेंट चढ़ गई--इसकी कथा संकेतों में ही सही, लेकिन गंभीरता से उपन्यास में बयां होती है।<br />उपन्यास के बारे में स्वयं लेखक का कहना है कि यह उपन्यास पूरी तरह से वैचारिक आधार पर लिखा गया है, जो कोसी क्षेत्र के जनसंघर्ष और वहॉं के राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास का एक छोटा-सा संकेत है, इस पूरे क्षेत्र का लोकजीवन, पर्यावरण, संघर्ष और जिजीविषा की पड़ताल इस उपन्यास में की गई है।देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-24676522657189486672009-12-28T23:46:00.000-08:002011-05-27T21:33:54.873-07:00'संवदिया' का कोसी केन्द्रित नवलेखन विशेषांक<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/Szm1bEKXBtI/AAAAAAAAAAw/gjqx40SHwg0/s1600-h/samvadia.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 242px; height: 320px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/Szm1bEKXBtI/AAAAAAAAAAw/gjqx40SHwg0/s320/samvadia.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5420563103095391954" /></a><br />संवदिया प्रकाशन, अररिया, बिहार द्वारा कोसी अंचल के वरिष्ठ कवि, कथाकार <a href="http://www.blogger.com/profile/00221269380902535211">श्री भोला पंडित 'प्रणयी'</a> के प्रधान संपादन में 'संवदिया' नामक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन पिछले पॉंच सालों से हो रहा है। आरंभ से ही पत्रिका के हर अंक में कोसी अंचल के किसी महत्वपूर्ण दिवंगत लेखक का परिचय, फोटो और उसके कृतित्व का आकलन करनेवाले लेख छापे जाने की परंपरा का निर्वाह इस पत्रिका ने निरंतर किया है।<br />'संवदिया' का <a href="http://www.scribd.com/doc/32877203/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%AC%E0%A4%B0-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A4%B0-2009-%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%A8-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%95-%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%A8-%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%95-%E0%A4%8F%E0%A4%95">अक्तूबर-दिसंबर 2009</a> का अंक कोसी केन्द्रित नवलेखन अंक है। इस अंक के साथ ही पत्रिका ने अपने छठे वर्ष में प्रवेश किया है। यह विशेषांक साहित्य अकादेमी में कार्यरत कोसी अंचल के युवा कवि-आलोचक देवेन्द्र कुमार देवेश के अतिथि संपादन में प्रकाशित हुआ है। अपने संपादकीय में उन्होंने लिखा है-इस अंक को केवल पिछले कुछेक सालों में कलम पकड़कर उत्साहपूर्वक लेखन की ओर प्रवृत्त होनेवाले नवातुर नवतुरिया लेखकों पर ही न केन्द्रित करके बीसवीं सदी के अंतिम दशक में हिन्दी साहित्य के समकालीन परिदृश्य पर कुछ हद तक अपनी पहचान बना चुकी कोसी अंचल की नई पीढ़ी पर केन्द्रित किया गया है। साथ ही इसमें इसमें इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक में लेखन की दुनिया में कदम रखनेवाली पीढ़ी को भी स्थान दिया गया है।<br />संपादकीय में कोसी अंचल की साहित्य परंपरा का संक्षिप्त अवगाहन प्रस्तुत करते हुए इसे सिद्ध कवि सरहपा, रीति कवि जयगोविन्द महाराज, सूफी कवि शेख किफायत, भक्त कवि लक्ष्मीनाथ परमहंस और संत कवि मेंहीं की भूमि बताया गया है, जिसे अनूपलाल मंडल, जनार्दन प्रसाद झा द्विज, फणीश्वरनाथ रेणु, राजकमल चौधरी और लक्ष्मीनारायण सुधांशु जैसे हिन्दी लेखकों ने भी अपनी ख्याति से प्रकाशित किया।<br />इस अंक में पंद्रह कवियों की कविताऍं, पॉंच कथाकारों की कहानियॉं और पुस्तक समीक्षाऍं प्रकाशित की गई हैं। कवियों के नाम हैं-<a href="http://www.blogger.com/profile/01248940700970757852">अरविन्द श्रीवास्तव</a>, कल्लोल चक्रवर्ती, श्याम चैतन्य, <a href="http://www.blogger.com/profile/08572611443817710195">कृष्णमोहन झा</a>, उल्लास मुखर्जी, राजर्षि अरुण, शुभेश कर्ण, राकेश रोहित, हरे राम सिंह, देवेन्द्र कुमार देवेश, पंकज चौधरी, स्मिता झा, अनुप्रिया, अरुणाभ सौरभ और कुमार सौरभ। कविताओं पर हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि-आलोचकों <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BE._%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80">डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी</a> और डॉ. सुरेन्द्र स्निग्ध की टिप्पणियॉं प्रकाशित की गई हैं।<br /> अंक में संजीव ठाकुर, संजय कुमार सिंह, रणविजय सिंह सत्यकेतु, श्रीधर करुणानिधि और उमाशंकर सिंह की कहानियॉं हैं, जिनपर डॉ. ज्योतिष जोशी और डॉ. देवशंकर नवीन की टिप्पणियॉं छापी गई हैं। यह अंक <a href="http://www.google.co.in/imgres?imgurl=http://3.bp.blogspot.com/_6A_ojjZz29A/SdnQwaYKnRI/AAAAAAAAABw/3lAn5jq2ZlU/S220/OP-for-blog-1.gif&imgrefurl=http://kosimitra.blogspot.com/&h=147&w=220&sz=63&tbnid=h2COEyrvAKEiPM:&tbnh=71&tbnw=107&prev=/images%3Fq%3Dom%2Bprakash%2Bbharti&hl=en&usg=__zKOcbL1X7-wSQVtKI3abj8aAZqE=&sa=X&ei=EQ00TN6FOY2trAeF4ozwAw&ved=0CB8Q9QEwAA">ओमप्रकाश भारती</a> के आलेख और देवांशु वत्स की लघुकथाओं से भी सुसज्जित है।<br />'संवदिया' का आगामी अंक भी नवलेखन विशेषांक के रूप में निकालने की घोषणा की गई है, जिसमें शामिल होनेवाले 15 कवियों, 5 कथाकारों के नामों की घोषणा भी इस अंक में की गई है। संवदिया के इस अंक का मूल्य 30 रुपये है, जबकि इसकी वार्षिक सदस्यता 80 रुपये मात्र है। पत्रिका की प्रति अथवा सदस्यता के लिए निम्नांकित पते संपर्क किया जा सकता है- श्री भोला पंडित प्रणयी, संवदिया प्रकाशन, जयप्रकाश नगर, वार्ड नं. 7, अररिया, बिहार 854311, <br />मोबाइल नं.9931223187, ई-मेल : samvadiapatrika@yahoo.comदेवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6027552583214853843.post-44218486518185740802009-12-21T21:35:00.000-08:002011-05-27T21:56:37.122-07:00चंद्रकिशोर जायसवाल का उपन्यास 'सात फेरे'<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/Szw-eUOSn1I/AAAAAAAAABY/kpcjJ4csT54/s1600-h/saath+phere-photo.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 243px; height: 320px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/Szw-eUOSn1I/AAAAAAAAABY/kpcjJ4csT54/s320/saath+phere-photo.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5421276741992882002" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/Szw-d43Ec9I/AAAAAAAAABQ/593vu0nzTJw/s1600-h/saath+phere.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 212px; height: 320px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_0KTgl6fSpLY/Szw-d43Ec9I/AAAAAAAAABQ/593vu0nzTJw/s320/saath+phere.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5421276734647727058" /></a><br />अभी हाल ही में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा हिन्दी के प्रतिष्ठित कथाकार चंद्रकिशोर जायसवाल का नवीनतम उपन्यास 'सात फेरे' प्रकाशित किया गया है। ज्ञातव्य हो कि ज्ञानपीठ द्वारा वर्ष 2009 को 'उपन्यास वर्ष' घोषित किया गया है। इस वर्ष ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित उपन्यासों में उक्त उपन्यास आकार में सबसे बड़ा है।<div>कोसी अंचल के मधेपुरा जिलांतर्गत बिहारीगंज नामक गॉंव में 1940 ई. में जन्में चंद्रकिशोर जायसवाल हिन्दी के उन गिने-चुने कथाकारों में हैं, जिनके पास कम-से-कम एक दर्जन ऐसी कहानियॉं हैं, जिन्हें सदी की श्रेष्ठ कहानियों की सूची में बेहिचक रखा जा सकता है। 'नकबेसर कागा ले भागा', 'दुखियादास कबीर', 'बिशनपुर प्रेतस्य', 'हिंगवा घाट में पानी रे', 'मर गया दीपनाथ', ' 'सिपाही', 'कालभंजक', 'आखिरी ईंट', 'तर्पण', 'आघातपुष्प' और जैसी अप्रतिम कहानियॉं लिखनेवाले चंद्रकिशोर जायसवाल का यह आठवॉं उपन्यास है। उनके पूर्व प्रकाशित उपन्यासों के नाम हैं-'गवाह गैरहाजिर', 'जीबछ का बेटा बुद्ध', 'शीर्षक', 'चिरंजीव', 'दाह', 'मॉं' और 'पलटनिया'। जायसवाल जी के नौ कहानी-संग्रह, चार एकांकी पुस्तिकाऍं और दो नाटक भी प्रकाशित हैं।</div><div>रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, आनंद सागर कथाक्रम सम्मान और बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के साहित्य साधना सम्मान से सम्मानित जायसवाल जी के प्रथम प्रकाशित उपन्यास 'गवाह गैरहाजिर' पर राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा 'रुई का बोझ' शीर्षक फिल्म का निर्माण भी किया जा चुका है। दूरदर्शन द्वारा उनकी कहानी 'हिंगवा घाट में पानी रे' का फिल्मांकन और प्रसारण भी हुआ है।</div><div>'सात फेरे' एक तिहेजू वर बैजनाथ की कहानी है, जिसकी तीन बीवियॉं मर चुकी हैं; और वह चौथी बीवी की तलाश में निकला है। इस तलाश में उसका साथी है पलटू झा नामक पंडित। दोनों कन्याखोजी अभियान में सात बार अलग-अलग दिशाओं में यात्रा पर निकलते हैं और अंतिम यात्रा के पहले हर यात्रा में अपनी दुर्दशा करवाकर लौटते हैं। एक अधेड़ व्यक्ति के सात फेरों के लिए लगाए गए सात रोचक और रोमांचक फेरों की ही कथा है यह 'सात फेरे'। जायसवाल जी ने अपनी चिर-परिचित शैली में विभिन्न यादगार चरित्रों के माध्यम से व्यक्ति, परिवार, समाज और देश काल के यथार्थ का व्यंग्य-विनोदपूर्ण चित्रण किया है। यद्यपि उपन्यास वृहदाकार है, लेकिन एक बार पढ़ना शुरू करने के बाद इसे बीच में ही छोड़ पाना किसी भी पाठक के लिए मुश्किल है। </div><div>उपन्यास में कोसी अंचल के लोकजीवन, लोकसंस्कृति और लोकसाहित्य के अनेक लिखित-अलिखित विवरणों को कुशलता से पिरोया गया है और समकालीन समय के ग्रामांचलीय यथार्थ को सूक्ष्मता से उद्घाटित किया गया है।</div>देवेन्द्र कुमार देवेशhttp://www.blogger.com/profile/01961406643733137423noreply@blogger.com4